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*सिद्ध पीठ हाथिया राम मठ पर महामंडलेश्वर स्वामी भवानी नंदन यति जी द्वारा महायज्ञ का आयोजन पूर्णिमा तक*

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गाज़ीपर। सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 26वें पीठाधिपति एवं जूना अखाड़ा के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी श्री भवानीनंदन यति जी महाराज द्वारा चातुर्मास महाव्रत अतिरुद्र महायज्ञ संपादित किया जा रहा है। श्रावण प्रतिपदा से शुरू होकर यह चातुर्मास महानुष्ठान भाद्र पद पूर्णिमा तक चलेगा। इसमें पुण्य लाभ की कामना लिए रोजाना शिष्य श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं।उल्लेखनीय है कि अध्यात्म जगत में एक तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 26वें पीठाधीश्वर स्वामी भवानी नन्दन यति जी महाराज ने सिद्धपीठ की गद्दी पर आसीन होने के उपरांत अपने गुरुजनों की प्रेरणा से उनके ही मार्ग का अनुसरण करते हुए चातुर्मास अनुष्ठान का संकल्प लिया। इस कड़ी में वह सोमनाथ, नागेश्वर महादेव, त्रयम्बकेश्वर महादेव, घृष्णेश्वर महादेव, भीमाशंकर महादेव, ओमकारेश्वर, महाकालेश्वर, बाबा विश्वनाथ, रामेश्वरम, मल्लिकार्जुन महादेव, केदारनाथ महादेव, बाबा वैद्यनाथ देवधर, परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग तथा नेपाल स्थित पशुपतिनाथ महादेव मंदिर पर लगातार प्रवास कर चातुर्मास महायज्ञ संपादित कर चुके हैं। फिलहाल विगत कुछ वर्षों से वह सिद्धपीठ हथियाराम मठ से ही अपना चातुर्मास अनुष्ठान संपन्न कर रहे हैं। शनिवार को उपस्थित शिष्य श्रद्धालुओं को चातुर्मास की महत्ता बताते हुए महामंडलेश्वर स्वामी श्री भवानीनन्दन यति महाराज ने बताया कि चातुर्मास, सनातन वैदिक धर्म में आहार, विहार और विचार के परिष्करण का समय है। यह संयम और सहिष्णुता की साधना करने के लिए प्रेरित करने वाला समय है। इस दौरान तप, शास्त्राध्ययन एवं सत्संग आदि करने का तो विशेष महत्व है ही, सभी नियम सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक दृष्टि से भी बड़ा उपयोगी है। चातुर्मास धर्म, परम्परा, संस्कृति और स्वास्थ्य को एक सूत्र में पिरोने वाला समय माना जाता है। चातुर्मास संयम को साधने का संदेश देता है। बढ़ती असंवेदनशीलता के समय में संयम की यह साधना और भी आवश्यक हो जाती है। संयमित आचरण से हम न केवल मन को वश में करना सीखते हैं, बल्कि हमें धैर्य और समझ भरा व्यवहार करना भी आता है। उन्होंने बताया कि चातुर्मास ऐसा अवसर है, जिसमें हम खुद अपने ही नहीं औरों के अस्तित्व को भी स्वीकार कर उसे सम्मान देने के भाव को जीते हैं। चातुर्मास हमें मन के वेग को संयम की रस्सी से बांधने की प्रेरणा देता है। कहा कि स्वास्थ्य की देखभाल और जागरूकता के लिए भी चातुर्मास का बड़ा महत्व है। चातुर्मास धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आरोग्य विज्ञान व सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को यदि हम केवल तीन शब्दों में कहना या बताना चाहें तो इसका मतलब अर्पण, तर्पण और समर्पण है। इन तीनों में ही त्याग की भावना समाहित है। उन्होंने कहा कि सिद्धपीठ हथियाराम मठ स्थित मृणमयी बुढ़िया माई के पुण्य प्रताप से यहां की माटी चंदन से भी पवित्र है। इस पवित्र भूमि पर किए गए धार्मिक अनुष्ठान से मन को शांति मिलती है।

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